अमन की आशा : समझें भारत-पाकिस्तान सीजफायर पहल के मायने...नई दिल्ली: भारत और पाकिस्तान बीते मंगलवार को इस बात पर रजामंद हो गए कि अंतरराष्ट्रीय सीमा और नियंत्रण रेखा पर दोनों देश सीज फायर का उल्लंघन नहीं करेंगे. दोनों देश इस बात पर भी राजी हो गए वे नवंबर 2003 में दोनों देशों के बीच हुए शांति समझौते का अक्षरश: पालन करेंगे. इसमें खास बात यह है कि यह फैसला दोनों देशों के डायरेक्टर जनरल मिलिट्री ऑपरेशन्स (डीजीएमओ) के बीच हॉट लाइन पर हुई बातचीत के बाद हुआ. और सबसे बड़ी बात यह कि शांति का प्रस्ताव पाकिस्तान की तरफ से आया और भारत ने इसे स्वीकार कर लिया.
यहां सहज प्रश्न मन में आता है कि यह सब अभी क्यों हो रहा है. कहीं इसमें पाकिस्तान की चाल तो नहीं है और अगर चाल है भी तो भारत को इससे क्या फायदा है. क्योंकि इस तरह के समझौते के लिए सबसे अच्छा मौका तो चार साल पहले तभी होना चाहिए था जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के शपथ ग्रहण में पाकिस्तान के तत्कालीन प्रधानमंत्री नवाज शरीफ खुद दिल्ली आए थे. या यह सब तब क्यों नहीं हुआ जब प्रधानमंत्री मोदी प्रोटोकॉट तोड़कर अचानक नवाज शरीफ के यहां एक पारिवारिक कार्यक्रम में पहुंच गए थे. लेकिन तब तो भारत को पठानकोट आतंकवादी हमला मिला. जिसके जवाब में भारत ने खुले आम सीजफायर को ताक पर रखकर पाकिस्तान में घुसकर सर्जिकल स्ट्राइक कर दी. उसके बाद से भारत देश के अंदर और सरहद दोनों जगह आतंकवाद को पूरी सख्ती से कुचल रहा है. आतंकवाद के खिलाफ बने इस सख्त माहौल में दोनों देशों के डीजीएमओ ने तब इस तरह का फैसला किया जब प्रधानमंत्री मोदी विदेश यात्रा पर हैं.
तो इससे इतना संकेत मिलता है कि दोनों देशों ने काफी सोच विचारकर और लंबा होमवर्क करने के बाद शांति की तरफ जाने का फैसला किया है. अगर पाकिस्तान के प्रमुख अखबार द डॉन की मानें तो पाक फौज लंबे समय से भारत को सीजफायर के लिए समझाने की कोशिश कर रही थी. अखबार ने इस साल 15 जनवरी को इस बारे में खबर भी छापी थी, लेकिन तब फौज ने शांति की पहल का खंडन किया था. सूत्रों की मानें तो भारत पाक का शांति प्रस्ताव अपनी शर्तों पर ही स्वीकार करने को राजी था और पाक को भारत को मनाने में वक्त लग रहा था. यह कवायद अब जाकर पूरी हुई. वैसे भी इस समय दुनिया में शांति का माहौल बन रहा है. इसी महीने तो दोनों कोरिया भी पहली बार एक दूसरे के करीब आते दिखे.
बहुत मिलती-जुलती रही दोनों पक्षों की भाषा
पाकिस्तान की ओर से उनके डीजीएमओ मेजर जनरल शाहिद शमशाद मिर्जा और भारत की तरफ से डीजीएमओ लेफ्टिनेंट जनरल अनिल चौहान ने हॉट लाइन पर बात की. बातचीत की पहल पाकिस्तान की ओर से की गई. दोनों देशों ने मिलते जुलते बयान जारी किए. दोनों देशों ने एक दूसरे पर ‘गलत’ करने का आरोप भी नहीं लगाया. पाकिस्तान की तरफ से वर्किंग बाउंड्री और भारत की तरफ से अंतरराष्ट्रीय सीमा जैसे शब्दों के अंतर को हटा दें, तो पता ही नहीं चलेगा कि कौन सा बयान किस देश ने दिया है. समझौते पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए भारतीय सेना के पूर्व डीजीएमओ लेफ्टिनेंट जनरल विनोद भाटिया ने जी न्यूज डिजिटल से कहा, ‘यह बहुत अच्छी पहल है. अमन-शांति हमेशा अच्छी ही होती है. मौजूदा हालात में पाकिस्तान लंबे समय से चाह रहा था कि सीजफायर फिर बहाल हो जाए.’’
2003 से मिलता-जुलता रहा 2018 का घटनाक्रम
भारत और पाकिस्तान के बीच 2003 में सीज फायर का समझौता 23 नवंबर को रमजान के आखिरी दिन ईद उल फित्र को हुआ था और इस बार भी समझौता रमजान के महीने में ही हुआ है. उस समय भी पाकिस्तान ने समझौते की पहल की थी और दोनों देशों के डीजीएमओ ने हॉटलाइन पर बात कर, इसे फाइनल रूप दिया था. इस बार भी यही हुआ. 2001 में भारतीय संसद पर आतंकवादी हमले के बाद दोनों देशों के रिश्ते इतने खराब हो चुके थे कि युद्ध के आसार दिखने लगे थे. लेकिन दो साल बाद 2003 में समझौता हुआ. इस बार भी पाक की हरकतों के बाद सितंबर 2016 में की गई सर्जिकल स्ट्राइक के बाद से दोनों देशों में तनाव बना हुआ था और अब दो साल बाद अमन की बात हुई है. 2003 में भी देश में बीजेपी की सरकार थी और इस समय भी बीजेपी की सरकार है, जबकि पाकिस्तान में तब भी राजनैतिक अनिश्चितता के भंवर से गुजर रहा था और इस बार भी गुजर रहा है. बल्कि इस बार तो ईद के बाद पाकिस्तान में आम चुनाव भी हैं.
जुलाई में पाकिस्तान में होने हैं आम चुनाव
पाकिस्तान इस समय राजनीति के पसोपेश भरे दौर से गुजर रहा है. इस साल जुलाई में वहां आम चुनाव होने हैं. ये चुनाव ऐसे समय पर हो रहे हैं जब पाकिस्तान की सियासत पर लंबे समय से काबिज रहे नेताओं का कैरियर खत्म कर दिया गया है. आम चुनाव से पहले पाकिस्तान के पूर्व मुख्य न्यायाधीश नसीरुल मुल्क को अंतरिम प्रधानमंत्री बनाया गया है. मुल्क की नियुक्ति नवाज शरीफ की सत्ताधारी पार्टी पाकिस्तान मुस्लिम लीग नवाज और दिवंगत बेनजीर भुट्टो की पार्टी पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी के नेताओं की सहमति से की गई है. देखने में लगता है कि हालात ठीक हैं, लेकिन सब कुछ ऐसा है नहीं.
तीन बार पाकिस्तान के प्रधानमंत्री रहे नवाज शरीफ को प्रधानमंत्री पद से हटना पड़ा. उसके बाद उन्हें पार्टी की अध्यक्षता और चुनाव लड़ने के अयोग्य घोषित किया गया. उसके पीछे सेना का हाथ माना जा रहा है. शरीफ के बारे में यह धारणा थी कि वे ज्याद से ज्यादा शक्तियां चुनी हुई सरकार के हाथ में लाने की कोशिश कर रहे थे, जबकि पाकिस्तान में 50 साल से ज्यादा सरकार चलाने वाली सेना ऐसा नहीं चाहती थी. शरीफ को किनारे लगाकर सेना ने अपनी स्थिति मजबूत की है. हाल ही में शरीफ ने एक इंटरव्यू में कहा कि 2008 के मुंबई आतंकवादी हमले में पाक सेना का हाथ था. इस बयान के बाद से शरीफ पाकिस्तानी मीडिया और फौज समर्थक राजनेताओं के नेशाने पर आ गए.
पाक फौज यह सुनिश्चित करना चाहती है कि इस चुनाव में नवाज की सत्ताधारी पार्टी हार जाए और फौज के मन का कोई नेता सत्ता में आए. नवाज को हाशिये पर लाने से सेना का काम आसान हो गया है, क्योंकि परवेज मुशर्रफ के लिए पाक सियासत के दरवाजे पहले ही बंद हो चुके हैं. मुशर्रफ लंबे समय से आत्मनिर्वासन में लंदन में रह रहे हैं. पूर्व क्रिकेटर इमरान खान की तहरीके इंसाफ या जस्टिस पार्टी का बहुत वजूद नहीं है. अगर वे आगे बढ़ते हैं तो सेना को उन्हें अपने कब्जे में रखना आसान होगा. बेनजीर भुट्टो की मौत के बाद उनके पति आसिफ अली जरदारी का इतना वजन नहीं है कि वे सेना की सत्ता को चुनौती दे सकें. ऐसे में पाक फौज अपनी रणनीति के मुताबिक काम कर रही है. फौज नहीं चाहती कि जब वह पाकिस्तान की सत्ता पर कब्जे की फैसलाकुन लड़ाई लड़ रही हो तब उसे सरहद पर भारतीय फौज के साये का सामना करना पड़े.
चुनाव पर न पड़े भारतीय फौज के खौफ की छाया
सर्जिकल स्ट्राइक के बाद भारत ने भले ही पाकिस्तान के खिलाफ अपनी तरफ से कोई सख्त कार्रवाई न की हो, लेकिन पाकिस्तानी अवाम और मीडिया में यह धारणा बन गई है कि भारत से पंगे लेकर पाकिस्तान आफत मोल ले रहा है. दोनों देशों के सीजफायर पर राजी होने के फैसले के बाद पाकिस्तान के प्रमुख् अखबार दि डॉन ने लिखा कि 2017 में भारत ने 1881 बार सीजफायर का उल्लंघन किया जो 2003 के समझौते के बाद सबसे बड़ी संख्या है. इस दौरान 87 सैनिक और नागरिक मारे गए. डॉन का दावा है कि इस साल भारत के सीज फायर उल्लंघन से 28 लोग मारे गए. हालांकि भारत ने स्पष्ट बताया है कि सीज फायर का उल्लंघन पाकिस्तान की तरफ से किया गया, भारत ने जब भी की, जवाबी कार्रवाई की. पाकिस्तान अपने हिसाब से अपने देश में तथ्य गढ़ने के लिए आजाद है, लेकिन पाक फौज अच्छी तरह जानती है कि अगर चुनाव के दौरान उसने भारत से पंगे लिए और पाक को जान-माल की बड़ी क्षति हुई तो इससे देश में फौज की छवि खराब ही होगी. चुनाव में अपनी छवि बचाने के लिए पाकिस्तान फिलहाल शांति की राह पर चलना चाहता है. वह अपने वोटर को यह नहीं बताना चाहता कि भारतीय फौज पाकिस्तान की शामत है.
भारत को आतंकवादी घुसपैठ कम होने की उम्मीद
अगर पाकिस्तानी सेना के अपने हित हैं तो इस समझौते से भारत को भी राहत मिलेगी. यह जानीमानी बात है कि मोदी सरकार आने के बाद से सरहद और देश के भीतर दोनों जगह आतंकवादियों के खिलाफ सख्त अभियान चल रहा है. कश्मीर घाटी में बड़े पैमाने पर आतंकवादियों को मार गिराया गया है. इससे कहीं बड़ी संख्या सरहद पर भारत में घुसपैठ की कोशिश में मारे गए आतंकवादियों की है. इस संघर्ष में भारतीय सेना के जवान भी शहीद होते हैं.
दरअसल होता यह है कि पाकिस्तानी सेना आतंकवादियों को भारत में घुसपैठ कराने के लिए गोलीबारी करती है. जब भारतीय सेना पाक को जवाब देने में व्यस्त होती है, तब ये आतंकी देश में घुस आते हैं. लेफ्टिनेंट जनरल भाटिया कहते हैं, ‘ऐसे में अगर पाकिस्तान सीजफायर का पालन करता है तो वह आतंकवादियों को कवर देने के लिए की जाने वाली गोलीबारी भी नहीं कर पाएगा, इससे सेना को चकमा देकर आतंकवादियों का भारत में घुसना कठिन हो जाएगा.’ भाटिया स्पष्ट कहते हैं कि फिलहाल भारत को इतनी ही राहत मिलेगी. हमें यह नहीं सोचना चाहिए कि इससे पाकिस्तान भारत के खिलाफ चलने वाला प्रॉक्सी वार छोड़ देगा.
Source:-Zeenews
View More About Our Services:-Mobile Database number Provider and Digital Marketing
यहां सहज प्रश्न मन में आता है कि यह सब अभी क्यों हो रहा है. कहीं इसमें पाकिस्तान की चाल तो नहीं है और अगर चाल है भी तो भारत को इससे क्या फायदा है. क्योंकि इस तरह के समझौते के लिए सबसे अच्छा मौका तो चार साल पहले तभी होना चाहिए था जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के शपथ ग्रहण में पाकिस्तान के तत्कालीन प्रधानमंत्री नवाज शरीफ खुद दिल्ली आए थे. या यह सब तब क्यों नहीं हुआ जब प्रधानमंत्री मोदी प्रोटोकॉट तोड़कर अचानक नवाज शरीफ के यहां एक पारिवारिक कार्यक्रम में पहुंच गए थे. लेकिन तब तो भारत को पठानकोट आतंकवादी हमला मिला. जिसके जवाब में भारत ने खुले आम सीजफायर को ताक पर रखकर पाकिस्तान में घुसकर सर्जिकल स्ट्राइक कर दी. उसके बाद से भारत देश के अंदर और सरहद दोनों जगह आतंकवाद को पूरी सख्ती से कुचल रहा है. आतंकवाद के खिलाफ बने इस सख्त माहौल में दोनों देशों के डीजीएमओ ने तब इस तरह का फैसला किया जब प्रधानमंत्री मोदी विदेश यात्रा पर हैं.
तो इससे इतना संकेत मिलता है कि दोनों देशों ने काफी सोच विचारकर और लंबा होमवर्क करने के बाद शांति की तरफ जाने का फैसला किया है. अगर पाकिस्तान के प्रमुख अखबार द डॉन की मानें तो पाक फौज लंबे समय से भारत को सीजफायर के लिए समझाने की कोशिश कर रही थी. अखबार ने इस साल 15 जनवरी को इस बारे में खबर भी छापी थी, लेकिन तब फौज ने शांति की पहल का खंडन किया था. सूत्रों की मानें तो भारत पाक का शांति प्रस्ताव अपनी शर्तों पर ही स्वीकार करने को राजी था और पाक को भारत को मनाने में वक्त लग रहा था. यह कवायद अब जाकर पूरी हुई. वैसे भी इस समय दुनिया में शांति का माहौल बन रहा है. इसी महीने तो दोनों कोरिया भी पहली बार एक दूसरे के करीब आते दिखे.
बहुत मिलती-जुलती रही दोनों पक्षों की भाषा
पाकिस्तान की ओर से उनके डीजीएमओ मेजर जनरल शाहिद शमशाद मिर्जा और भारत की तरफ से डीजीएमओ लेफ्टिनेंट जनरल अनिल चौहान ने हॉट लाइन पर बात की. बातचीत की पहल पाकिस्तान की ओर से की गई. दोनों देशों ने मिलते जुलते बयान जारी किए. दोनों देशों ने एक दूसरे पर ‘गलत’ करने का आरोप भी नहीं लगाया. पाकिस्तान की तरफ से वर्किंग बाउंड्री और भारत की तरफ से अंतरराष्ट्रीय सीमा जैसे शब्दों के अंतर को हटा दें, तो पता ही नहीं चलेगा कि कौन सा बयान किस देश ने दिया है. समझौते पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए भारतीय सेना के पूर्व डीजीएमओ लेफ्टिनेंट जनरल विनोद भाटिया ने जी न्यूज डिजिटल से कहा, ‘यह बहुत अच्छी पहल है. अमन-शांति हमेशा अच्छी ही होती है. मौजूदा हालात में पाकिस्तान लंबे समय से चाह रहा था कि सीजफायर फिर बहाल हो जाए.’’
2003 से मिलता-जुलता रहा 2018 का घटनाक्रम
भारत और पाकिस्तान के बीच 2003 में सीज फायर का समझौता 23 नवंबर को रमजान के आखिरी दिन ईद उल फित्र को हुआ था और इस बार भी समझौता रमजान के महीने में ही हुआ है. उस समय भी पाकिस्तान ने समझौते की पहल की थी और दोनों देशों के डीजीएमओ ने हॉटलाइन पर बात कर, इसे फाइनल रूप दिया था. इस बार भी यही हुआ. 2001 में भारतीय संसद पर आतंकवादी हमले के बाद दोनों देशों के रिश्ते इतने खराब हो चुके थे कि युद्ध के आसार दिखने लगे थे. लेकिन दो साल बाद 2003 में समझौता हुआ. इस बार भी पाक की हरकतों के बाद सितंबर 2016 में की गई सर्जिकल स्ट्राइक के बाद से दोनों देशों में तनाव बना हुआ था और अब दो साल बाद अमन की बात हुई है. 2003 में भी देश में बीजेपी की सरकार थी और इस समय भी बीजेपी की सरकार है, जबकि पाकिस्तान में तब भी राजनैतिक अनिश्चितता के भंवर से गुजर रहा था और इस बार भी गुजर रहा है. बल्कि इस बार तो ईद के बाद पाकिस्तान में आम चुनाव भी हैं.
जुलाई में पाकिस्तान में होने हैं आम चुनाव
पाकिस्तान इस समय राजनीति के पसोपेश भरे दौर से गुजर रहा है. इस साल जुलाई में वहां आम चुनाव होने हैं. ये चुनाव ऐसे समय पर हो रहे हैं जब पाकिस्तान की सियासत पर लंबे समय से काबिज रहे नेताओं का कैरियर खत्म कर दिया गया है. आम चुनाव से पहले पाकिस्तान के पूर्व मुख्य न्यायाधीश नसीरुल मुल्क को अंतरिम प्रधानमंत्री बनाया गया है. मुल्क की नियुक्ति नवाज शरीफ की सत्ताधारी पार्टी पाकिस्तान मुस्लिम लीग नवाज और दिवंगत बेनजीर भुट्टो की पार्टी पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी के नेताओं की सहमति से की गई है. देखने में लगता है कि हालात ठीक हैं, लेकिन सब कुछ ऐसा है नहीं.
तीन बार पाकिस्तान के प्रधानमंत्री रहे नवाज शरीफ को प्रधानमंत्री पद से हटना पड़ा. उसके बाद उन्हें पार्टी की अध्यक्षता और चुनाव लड़ने के अयोग्य घोषित किया गया. उसके पीछे सेना का हाथ माना जा रहा है. शरीफ के बारे में यह धारणा थी कि वे ज्याद से ज्यादा शक्तियां चुनी हुई सरकार के हाथ में लाने की कोशिश कर रहे थे, जबकि पाकिस्तान में 50 साल से ज्यादा सरकार चलाने वाली सेना ऐसा नहीं चाहती थी. शरीफ को किनारे लगाकर सेना ने अपनी स्थिति मजबूत की है. हाल ही में शरीफ ने एक इंटरव्यू में कहा कि 2008 के मुंबई आतंकवादी हमले में पाक सेना का हाथ था. इस बयान के बाद से शरीफ पाकिस्तानी मीडिया और फौज समर्थक राजनेताओं के नेशाने पर आ गए.
पाक फौज यह सुनिश्चित करना चाहती है कि इस चुनाव में नवाज की सत्ताधारी पार्टी हार जाए और फौज के मन का कोई नेता सत्ता में आए. नवाज को हाशिये पर लाने से सेना का काम आसान हो गया है, क्योंकि परवेज मुशर्रफ के लिए पाक सियासत के दरवाजे पहले ही बंद हो चुके हैं. मुशर्रफ लंबे समय से आत्मनिर्वासन में लंदन में रह रहे हैं. पूर्व क्रिकेटर इमरान खान की तहरीके इंसाफ या जस्टिस पार्टी का बहुत वजूद नहीं है. अगर वे आगे बढ़ते हैं तो सेना को उन्हें अपने कब्जे में रखना आसान होगा. बेनजीर भुट्टो की मौत के बाद उनके पति आसिफ अली जरदारी का इतना वजन नहीं है कि वे सेना की सत्ता को चुनौती दे सकें. ऐसे में पाक फौज अपनी रणनीति के मुताबिक काम कर रही है. फौज नहीं चाहती कि जब वह पाकिस्तान की सत्ता पर कब्जे की फैसलाकुन लड़ाई लड़ रही हो तब उसे सरहद पर भारतीय फौज के साये का सामना करना पड़े.
चुनाव पर न पड़े भारतीय फौज के खौफ की छाया
सर्जिकल स्ट्राइक के बाद भारत ने भले ही पाकिस्तान के खिलाफ अपनी तरफ से कोई सख्त कार्रवाई न की हो, लेकिन पाकिस्तानी अवाम और मीडिया में यह धारणा बन गई है कि भारत से पंगे लेकर पाकिस्तान आफत मोल ले रहा है. दोनों देशों के सीजफायर पर राजी होने के फैसले के बाद पाकिस्तान के प्रमुख् अखबार दि डॉन ने लिखा कि 2017 में भारत ने 1881 बार सीजफायर का उल्लंघन किया जो 2003 के समझौते के बाद सबसे बड़ी संख्या है. इस दौरान 87 सैनिक और नागरिक मारे गए. डॉन का दावा है कि इस साल भारत के सीज फायर उल्लंघन से 28 लोग मारे गए. हालांकि भारत ने स्पष्ट बताया है कि सीज फायर का उल्लंघन पाकिस्तान की तरफ से किया गया, भारत ने जब भी की, जवाबी कार्रवाई की. पाकिस्तान अपने हिसाब से अपने देश में तथ्य गढ़ने के लिए आजाद है, लेकिन पाक फौज अच्छी तरह जानती है कि अगर चुनाव के दौरान उसने भारत से पंगे लिए और पाक को जान-माल की बड़ी क्षति हुई तो इससे देश में फौज की छवि खराब ही होगी. चुनाव में अपनी छवि बचाने के लिए पाकिस्तान फिलहाल शांति की राह पर चलना चाहता है. वह अपने वोटर को यह नहीं बताना चाहता कि भारतीय फौज पाकिस्तान की शामत है.
भारत को आतंकवादी घुसपैठ कम होने की उम्मीद
अगर पाकिस्तानी सेना के अपने हित हैं तो इस समझौते से भारत को भी राहत मिलेगी. यह जानीमानी बात है कि मोदी सरकार आने के बाद से सरहद और देश के भीतर दोनों जगह आतंकवादियों के खिलाफ सख्त अभियान चल रहा है. कश्मीर घाटी में बड़े पैमाने पर आतंकवादियों को मार गिराया गया है. इससे कहीं बड़ी संख्या सरहद पर भारत में घुसपैठ की कोशिश में मारे गए आतंकवादियों की है. इस संघर्ष में भारतीय सेना के जवान भी शहीद होते हैं.
दरअसल होता यह है कि पाकिस्तानी सेना आतंकवादियों को भारत में घुसपैठ कराने के लिए गोलीबारी करती है. जब भारतीय सेना पाक को जवाब देने में व्यस्त होती है, तब ये आतंकी देश में घुस आते हैं. लेफ्टिनेंट जनरल भाटिया कहते हैं, ‘ऐसे में अगर पाकिस्तान सीजफायर का पालन करता है तो वह आतंकवादियों को कवर देने के लिए की जाने वाली गोलीबारी भी नहीं कर पाएगा, इससे सेना को चकमा देकर आतंकवादियों का भारत में घुसना कठिन हो जाएगा.’ भाटिया स्पष्ट कहते हैं कि फिलहाल भारत को इतनी ही राहत मिलेगी. हमें यह नहीं सोचना चाहिए कि इससे पाकिस्तान भारत के खिलाफ चलने वाला प्रॉक्सी वार छोड़ देगा.
Source:-Zeenews
View More About Our Services:-Mobile Database number Provider and Digital Marketing
No comments:
Post a Comment
Note: Only a member of this blog may post a comment.