Thursday, May 31, 2018

महंगाई की दोहरी मार! पेट्रोल-डीजल के बाद LPG के दाम भी बढ़े, जानें कितना महंगा हुआ सिलेंडर

नई दिल्ली: पेट्रोल-डीजल की महंगाई के बाद गैस सिलेंडर के दाम भी बढ़ गए हैं. पहले से ही महंगाई की मार झेल रही जनता को अब घर में खाना बनाने के लिए इस्तेमाल होने वाले एलपीजी सिलेंडर पर ज्यादा खर्च करना होगा. शुक्रवार (1 जून) को सब्सिडी वाले सिलेंडर के दाम में 2.34 रुपए की बढ़ोतरी की गई है, जबकि बिना सब्सिडी वाले सिलेंडर की कीमत में 48 रुपए का इजाफा हुआ है. नई कीमतें लागू होने के बाद अब दिल्ली में सब्सिडी वाला सिलेंडर 493.55 रुपए में मिलेगा, जबकि बिना सब्सिडी वाला सिलेंडर के लिए 698.50 रुपए चुकाने होंगे.

इंडियन ऑयल कॉरपोरेशन की वेबसाइट के मुताबिक, राजधानी दिल्ली में सब्सिडी वाला सिलेंडर 493.55 रुपए, कोलकाता में 496.65 रुपए, मुंबई में 491.31 रुपए और चेन्नई में 481.84 रुपए में मिल रहा है. वहीं दूसरी ओर राजधानी दिल्ली में बिना सब्सिडी वाला सिलेंडर 698.50 रुपए, कोलकाता में 723.50 रुपए, मुंबई में 671.50 रुपए और चेन्नई में 721.50 रुपए में मिल रहा है. इंडियन ऑयल कॉरपोरेशन की वेबसाइट के मुताबिक, दिल्ली में बिना सब्सिडी वाला सिलेंडर 698.50 रुपया, कोलकाता में 723.50 रुपया, मुंबई में 671.50 रुपया और चेन्नई में 721.50 रुपया में मिलेगा.

होटल और रेस्टोरेंट में इस्तेमाल होने वाले सिलेंडर के दाम में भी इजाफा किया गया है. कमर्शियल सिलेंडर की कीमत 77 रुपए बढ़कर अब 1244.50 रुपए हो गई है. ये कीमतें (शुक्रवार, 1 जनू) आज से ही प्रभावी होंगी. इससे पहले बीते 2 अप्रैल को गैर-सब्सिडी वाले एलपीजी गैस की कीमत में प्रति सिलिंडर 35.50 रुपए और सब्सिडी प्राप्त सिलिंडरों में 1.74 रुपए की कमी की गई थी.

लगातार तीसरे दिन सस्ता हुआ पेट्रोल-डीजल, जानें कीमत में हुई कितनी कटौती

डीजल और पेट्रोल की कीमतों में शुक्रवार (1 जून) को भी कटौती की गई. इस तरह से पिछले तीन दिनों में अबतक डीज़ल 11 पैसा सस्ता हुआ है, जबकि पेट्रोल में कुल 14 पैसे की कमी आई है. शुक्रवार को पेट्रोल 6 पैसे सस्ता हुआ है. इससे पहले पेट्रोल के दाम में बीते 30 मई को 1 पैसे और 31 मई को 7 पैसे की कटौती की गई थी. इस तरह से बीते तीन दिनों में पेट्रोल के दाम में कुल 14 पैसे की कमी आई है. शुक्रवार को डीजल 5 पैसे सस्ता हुआ है. इससे पहले डीजल के दाम में बीते 30 मई को 1 पैसे और 31 मई को 5 पैसे की कटौती की गई थी. इस तरह से बीते तीन दिनों में डीजल के दाम में कुल 11 पैसे प्रति लीटर की कमी आई है.

सरकारी तेल कंपनियों की ओर से जारी कीमत अधिसूचना के अनुसार, दिल्ली मे अब पेट्रोल की कीमत 78.29 रुपए प्रति लीटर और डीजल की कीमत 69.20 रुपए प्रति लीटर होगी. ईंधन की कीमत राज्यों के स्थानीय करों के हिसाब से बदलती हैं. सभी मेट्रो शहरों और अधिकतर राज्यों की राजधानी के मुकाबले दिल्ली में कीमतें सबसे कम हैं.

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अमन की आशा : समझें भारत-पाकिस्तान सीजफायर पहल के मायने...

अमन की आशा : समझें भारत-पाकिस्तान सीजफायर पहल के मायने...नई दिल्ली: भारत और पाकिस्तान बीते मंगलवार को इस बात पर रजामंद हो गए कि अंतरराष्ट्रीय सीमा और नियंत्रण रेखा पर दोनों देश सीज फायर का उल्लंघन नहीं करेंगे. दोनों देश इस बात पर भी राजी हो गए वे नवंबर 2003 में दोनों देशों के बीच हुए शांति समझौते का अक्षरश: पालन करेंगे. इसमें खास बात यह है कि यह फैसला दोनों देशों के डायरेक्टर जनरल मिलिट्री ऑपरेशन्स (डीजीएमओ) के बीच हॉट लाइन पर हुई बातचीत के बाद हुआ. और सबसे बड़ी बात यह कि शांति का प्रस्ताव पाकिस्तान की तरफ से आया और भारत ने इसे स्वीकार कर लिया.

यहां सहज प्रश्न मन में आता है कि यह सब अभी क्यों हो रहा है. कहीं इसमें पाकिस्तान की चाल तो नहीं है और अगर चाल है भी तो भारत को इससे क्या फायदा है. क्योंकि इस तरह के समझौते के लिए सबसे अच्छा मौका तो चार साल पहले तभी होना चाहिए था जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के शपथ ग्रहण में पाकिस्तान के तत्कालीन प्रधानमंत्री नवाज शरीफ खुद दिल्ली आए थे. या यह सब तब क्यों नहीं हुआ जब प्रधानमंत्री मोदी प्रोटोकॉट तोड़कर अचानक नवाज शरीफ के यहां एक पारिवारिक कार्यक्रम में पहुंच गए थे. लेकिन तब तो भारत को पठानकोट आतंकवादी हमला मिला. जिसके जवाब में भारत ने खुले आम सीजफायर को ताक पर रखकर पाकिस्तान में घुसकर सर्जिकल स्ट्राइक कर दी. उसके बाद से भारत देश के अंदर और सरहद दोनों जगह आतंकवाद को पूरी सख्ती से कुचल रहा है. आतंकवाद के खिलाफ बने इस सख्त माहौल में दोनों देशों के डीजीएमओ ने तब इस तरह का फैसला किया जब प्रधानमंत्री मोदी विदेश यात्रा पर हैं.

तो इससे इतना संकेत मिलता है कि दोनों देशों ने काफी सोच विचारकर और लंबा होमवर्क करने के बाद शांति की तरफ जाने का फैसला किया है. अगर पाकिस्तान के प्रमुख अखबार द डॉन की मानें तो पाक फौज लंबे समय से भारत को सीजफायर के लिए समझाने की कोशिश कर रही थी. अखबार ने इस साल 15 जनवरी को इस बारे में खबर भी छापी थी, लेकिन तब फौज ने शांति की पहल का खंडन किया था. सूत्रों की मानें तो भारत पाक का शांति प्रस्ताव अपनी शर्तों पर ही स्वीकार करने को राजी था और पाक को भारत को मनाने में वक्त लग रहा था. यह कवायद अब जाकर पूरी हुई. वैसे भी इस समय दुनिया में शांति का माहौल बन रहा है. इसी महीने तो दोनों कोरिया भी पहली बार एक दूसरे के करीब आते दिखे.


बहुत मिलती-जुलती रही दोनों पक्षों की भाषा
पाकिस्तान की ओर से उनके डीजीएमओ मेजर जनरल शाहिद शमशाद मिर्जा और भारत की तरफ से डीजीएमओ लेफ्टिनेंट जनरल अनिल चौहान ने हॉट लाइन पर बात की. बातचीत की पहल पाकिस्तान की ओर से की गई. दोनों देशों ने मिलते जुलते बयान जारी किए. दोनों देशों ने एक दूसरे पर ‘गलत’ करने का आरोप भी नहीं लगाया. पाकिस्तान की तरफ से वर्किंग बाउंड्री और भारत की तरफ से अंतरराष्ट्रीय सीमा जैसे शब्दों के अंतर को हटा दें, तो पता ही नहीं चलेगा कि कौन सा बयान किस देश ने दिया है. समझौते पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए भारतीय सेना के पूर्व डीजीएमओ लेफ्टिनेंट जनरल विनोद भाटिया ने जी न्यूज डिजिटल से कहा, ‘यह बहुत अच्छी पहल है. अमन-शांति हमेशा अच्छी ही होती है. मौजूदा हालात में पाकिस्तान लंबे समय से चाह रहा था कि सीजफायर फिर बहाल हो जाए.’’

2003 से मिलता-जुलता रहा 2018 का घटनाक्रम
भारत और पाकिस्तान के बीच 2003 में सीज फायर का समझौता 23 नवंबर को रमजान के आखिरी दिन ईद उल फित्र को हुआ था और इस बार भी समझौता रमजान के महीने में ही हुआ है. उस समय भी पाकिस्तान ने समझौते की पहल की थी और दोनों देशों के डीजीएमओ ने हॉटलाइन पर बात कर, इसे फाइनल रूप दिया था. इस बार भी यही हुआ. 2001 में भारतीय संसद पर आतंकवादी हमले के बाद दोनों देशों के रिश्ते इतने खराब हो चुके थे कि युद्ध के आसार दिखने लगे थे. लेकिन दो साल बाद 2003 में समझौता हुआ. इस बार भी पाक की हरकतों के बाद सितंबर 2016 में की गई सर्जिकल स्ट्राइक के बाद से दोनों देशों में तनाव बना हुआ था और अब दो साल बाद अमन की बात हुई है. 2003 में भी देश में बीजेपी की सरकार थी और इस समय भी बीजेपी की सरकार है, जबकि पाकिस्तान में तब भी राजनैतिक अनिश्चितता के भंवर से गुजर रहा था और इस बार भी गुजर रहा है. बल्कि इस बार तो ईद के बाद पाकिस्तान में आम चुनाव भी हैं.

जुलाई में पाकिस्तान में होने हैं आम चुनाव
पाकिस्तान इस समय राजनीति के पसोपेश भरे दौर से गुजर रहा है. इस साल जुलाई में वहां आम चुनाव होने हैं. ये चुनाव ऐसे समय पर हो रहे हैं जब पाकिस्तान की सियासत पर लंबे समय से काबिज रहे नेताओं का कैरियर खत्म कर दिया गया है. आम चुनाव से पहले पाकिस्तान के पूर्व मुख्य न्यायाधीश नसीरुल मुल्क को अंतरिम प्रधानमंत्री बनाया गया है. मुल्क की नियुक्ति नवाज शरीफ की सत्ताधारी पार्टी पाकिस्तान मुस्लिम लीग नवाज और दिवंगत बेनजीर भुट्टो की पार्टी पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी के नेताओं की सहमति से की गई है. देखने में लगता है कि हालात ठीक हैं, लेकिन सब कुछ ऐसा है नहीं.

तीन बार पाकिस्तान के प्रधानमंत्री रहे नवाज शरीफ को प्रधानमंत्री पद से हटना पड़ा. उसके बाद उन्हें पार्टी की अध्यक्षता और चुनाव लड़ने के अयोग्य घोषित किया गया. उसके पीछे सेना का हाथ माना जा रहा है. शरीफ के बारे में यह धारणा थी कि वे ज्याद से ज्यादा शक्तियां चुनी हुई सरकार के हाथ में लाने की कोशिश कर रहे थे, जबकि पाकिस्तान में 50 साल से ज्यादा सरकार चलाने वाली सेना ऐसा नहीं चाहती थी. शरीफ को किनारे लगाकर सेना ने अपनी स्थिति मजबूत की है. हाल ही में शरीफ ने एक इंटरव्यू में कहा कि 2008 के मुंबई आतंकवादी हमले में पाक सेना का हाथ था. इस बयान के बाद से शरीफ पाकिस्तानी मीडिया और फौज समर्थक राजनेताओं के नेशाने पर आ गए.

पाक फौज यह सुनिश्चित करना चाहती है कि इस चुनाव में नवाज की सत्ताधारी पार्टी हार जाए और फौज के मन का कोई नेता सत्ता में आए. नवाज को हाशिये पर लाने से सेना का काम आसान हो गया है, क्योंकि परवेज मुशर्रफ के लिए पाक सियासत के दरवाजे पहले ही बंद हो चुके हैं. मुशर्रफ लंबे समय से आत्मनिर्वासन में लंदन में रह रहे हैं. पूर्व क्रिकेटर इमरान खान की तहरीके इंसाफ या जस्टिस पार्टी का बहुत वजूद नहीं है. अगर वे आगे बढ़ते हैं तो सेना को उन्हें अपने कब्जे में रखना आसान होगा. बेनजीर भुट्टो की मौत के बाद उनके पति आसिफ अली जरदारी का इतना वजन नहीं है कि वे सेना की सत्ता को चुनौती दे सकें. ऐसे में पाक फौज अपनी रणनीति के मुताबिक काम कर रही है. फौज नहीं चाहती कि जब वह पाकिस्तान की सत्ता पर कब्जे की फैसलाकुन लड़ाई लड़ रही हो तब उसे सरहद पर भारतीय फौज के साये का सामना करना पड़े.

चुनाव पर न पड़े भारतीय फौज के खौफ की छाया
सर्जिकल स्ट्राइक के बाद भारत ने भले ही पाकिस्तान के खिलाफ अपनी तरफ से कोई सख्त कार्रवाई न की हो, लेकिन पाकिस्तानी अवाम और मीडिया में यह धारणा बन गई है कि भारत से पंगे लेकर पाकिस्तान आफत मोल ले रहा है. दोनों देशों के सीजफायर पर राजी होने के फैसले के बाद पाकिस्तान के प्रमुख् अखबार दि डॉन ने लिखा कि 2017 में भारत ने 1881 बार सीजफायर का उल्लंघन किया जो 2003 के समझौते के बाद सबसे बड़ी संख्या है. इस दौरान 87 सैनिक और नागरिक मारे गए. डॉन का दावा है कि इस साल भारत के सीज फायर उल्लंघन से 28 लोग मारे गए. हालांकि भारत ने स्पष्ट बताया है कि सीज फायर का उल्लंघन पाकिस्तान की तरफ से किया गया, भारत ने जब भी की, जवाबी कार्रवाई की. पाकिस्तान अपने हिसाब से अपने देश में तथ्य गढ़ने के लिए आजाद है, लेकिन पाक फौज अच्छी तरह जानती है कि अगर चुनाव के दौरान उसने भारत से पंगे लिए और पाक को जान-माल की बड़ी क्षति हुई तो इससे देश में फौज की छवि खराब ही होगी. चुनाव में अपनी छवि बचाने के लिए पाकिस्तान फिलहाल शांति की राह पर चलना चाहता है. वह अपने वोटर को यह नहीं बताना चाहता कि भारतीय फौज पाकिस्तान की शामत है.

भारत को आतंकवादी घुसपैठ कम होने की उम्मीद
अगर पाकिस्तानी सेना के अपने हित हैं तो इस समझौते से भारत को भी राहत मिलेगी. यह जानीमानी बात है कि मोदी सरकार आने के बाद से सरहद और देश के भीतर दोनों जगह आतंकवादियों के खिलाफ सख्त अभियान चल रहा है. कश्मीर घाटी में बड़े पैमाने पर आतंकवादियों को मार गिराया गया है. इससे कहीं बड़ी संख्या सरहद पर भारत में घुसपैठ की कोशिश में मारे गए आतंकवादियों की है. इस संघर्ष में भारतीय सेना के जवान भी शहीद होते हैं.

दरअसल होता यह है कि पाकिस्तानी सेना आतंकवादियों को भारत में घुसपैठ कराने के लिए गोलीबारी करती है. जब भारतीय सेना पाक को जवाब देने में व्यस्त होती है, तब ये आतंकी देश में घुस आते हैं. लेफ्टिनेंट जनरल भाटिया कहते हैं, ‘ऐसे में अगर पाकिस्तान सीजफायर का पालन करता है तो वह आतंकवादियों को कवर देने के लिए की जाने वाली गोलीबारी भी नहीं कर पाएगा, इससे सेना को चकमा देकर आतंकवादियों का भारत में घुसना कठिन हो जाएगा.’ भाटिया स्पष्ट कहते हैं कि फिलहाल भारत को इतनी ही राहत मिलेगी. हमें यह नहीं सोचना चाहिए कि इससे पाकिस्तान भारत के खिलाफ चलने वाला प्रॉक्सी वार छोड़ देगा.

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Friday, May 25, 2018

5 सांसदों ने 3 महीने पहले दिया था इस्‍तीफा, जानिए क्‍यों नहीं हो रहा स्‍वीकार

नई दिल्ली: वाईएसआर कांग्रेस के 5 लोकसभा सदस्यों को इस्‍तीफा सौंपे लगभग 3 महीना होने वाला है लेकिन लोकसभा स्पीकर सुमित्रा महाजन ने अब तक उनका इस्‍तीफा स्‍वीकार नहीं किया है. इन सदस्‍यों ने आंध्र प्रदेश को विशेष दर्जा दिए जाने की मांग पर मार्च की शुरुआत में इस्‍तीफा दिया था. उनकी मांग है कि इस्‍तीफा जल्‍द स्‍वीकार किया जाए. हालांकि सूत्रों का कहना है‍ कि स्‍पीकर यह तसल्‍ली करना चाहती हैं कि इसके पीछे कोई राजनीतिक दबाव तो नहीं. इस्‍तीफा सौंपने वालों में वाईएसआर के 5 सांसद- वाईवी शुभा रेड्डी, मिथुन रेड्डी, वाईएस अविनाश रेड्डी, वीवी प्रसादराव और सदन में पार्टी के नेता एम राजमोहन ने इस्तीफा दिया है. इस बीच, कांग्रेस ने भी मांग की है कि इनके इस्‍तीफे जल्‍द से जल्‍द स्‍वीकार किए जाएं ताकि इन सीटों पर उपचुनाव हो सकें.

वाईएसआर ने 4 और सांसदों की चुनाव आयोग से शिकायत की
इस बीच वाईएसआर कांग्रेस ने अपने 4 अन्‍य सांसदों के खिलाफ दल-बदल कानून के तहत चुनाव आयोग में शिकायत की है. इस पर भी कोई कार्रवाई नहीं हुई है. पार्टी इन सीटों पर भी उपचुनाव चाहती है. उधर, जिन सांसदों का इस्‍तीफा स्‍वीकार नहीं हुआ है उनका कहना है कि वे किसी राजनीतिक दबाव में नहीं हैं. उन्‍होंने स्‍वेच्‍छा से इस्‍तीफा दिया है. इकोनॉमिक टाइम्‍स ने वाईएसआर कांग्रेस सांसद मिथुन रेड्डी के हवाले से कहा कि उनके इस्‍तीफे को स्‍वीकार करने के पीछे देरी का कारण क्‍या है, यह उन्‍हें नहीं मालूम. बीजेपी सरकार ने आंध्र प्रदेश की जनता के साथ धोखा किया है. उन्‍होंने आरोप लगाया कि वह उपचुनाव नहीं चाहती, इसलिए हमारे इस्‍तीफे स्‍वीकार नहीं हो रहे.

Source:-Zeenews

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Thursday, May 24, 2018

CLAT-2018: दोबारा परीक्षा कराने की याचिका पर आज सुप्रीम कोर्ट सुना सकता है अहम फैसला

नई दिल्ली : देश की सर्वोच्च अदालत में आज (24 मई) कॉम लॉ एंट्रेंस टेस्ट को दोबारा कराने की मांग वाली य़ाचिका पर सुनवाई कराने वाला है. बुधवार (23 मई) को मामले की सुनवाई करते हुए कोर्ट ने कहा था कि याचिका की एक कॉपी NUALS, केंद्र सरकार और CLAT की कोर कमेटी को भेजी जाएगी. इसके साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि देश के 6 हाई कोर्ट में यदि इसी तरह के मामले पहले आ चुके हैं, जिन पर फैसला भी सुनाया जा चुका है, तो पहले सभी की डिटेल्स को अच्छी तरह से देखा और परखा जाएगा.

क्या है पूरा मामला?
NUALS ने 2018 में कॉमन लॉ एंट्रेंस टेस्ट को 13 मई को आयोजित किया था. NUALS ने निजी कंपनी सिफी टेक्नोलॉजी लिमिटेड के साथ मिलकर इस परीक्षा को आयोजित किया था. परीक्षा में हर साल हजारों की संख्या में छात्र हिस्सा लेते हैं. इस बार कई परीक्षा केंद्रों पर छात्रों को तकनीकी गड़बड़ियों का सामना करना पड़ा, जिसके कारण उन्हें 5 से 30 मिनट का नुकसान हुआ. ऐसे में छात्रों ने अपनी याचिका में यह बात कही है कि CLAT 2018 की ऑनलाइन परीक्षा के दौरान उन्हें इलेक्ट्रॉनिक स्तर पर और ऑनलाइन इंफ्रास्ट्रक्चर के स्तर पर कई चुनौतियों का सामना करना पड़ा. Cheap VPS Server Hosting

याचिका में क्या था?
याचिकाकर्ताओं ने अपनी याचिका में कहा था कि इस तरह की प्रतिस्पर्धी और कठिन परीक्षा में समय किसी भी छात्र का भविष्य तय में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है. सिर्फ एक गलत जवाब या एक सवाल को ना सुलझाना परीक्षा में बैठे छात्र को भारी पड़ सकता है. उसकी रैंकिंग हजारों पायदान खिसक सकती है. याचिका में यह भी कहा गया है कि यह भारत के संविधान के अनुच्छेद 14 और 21 के तहत छात्रों के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन है.

याचिका में और भी की गई शिकायत
तकनीकी समस्याओं के अलावा याचिकाकर्ता ने परीक्षा के दौरान सामने आई कुछ अन्य समस्याओं का भी उल्लेख किया है. जैसे कि परीक्षा केंद्रों का खराब इंफ्रास्ट्रक्चर, परीक्षा केंद्रों के लिए जिन स्टाफ्स को रखा गया था, उनसे पर्याप्त गाइडेंस नहीं मिल पाई और कई सेंटर्स पर परीक्षा के लिए अनुचित आचरण आदि जैसे मुद्दों को भी उठाया गया है.

क्या दोबारा होगी परीक्षा?
CLAT 2018 को लेकर यह पहली याचिका नहीं है. देश के विभिन्न उच्च न्यायलयों में CLAT 2018 में हुई अनियमितताओं को लेकर याचिका दायर की गई हैं. इसमें CLAT 2018 परीक्षा दोबारा कराए जाने की मांग की गई है. सुप्रीम कोर्ट इस मामले की सुनवाई कल यानी गुरुवार को एक बार फिर करने वाला है.

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Friday, May 18, 2018

जानें, क्या होता है प्रोटेम स्पीकर जिसे लेकर कर्नाटक में मचा है इतना बवाल

नई दिल्ली: कर्नाटक में शनिवार को सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद शक्ति परीक्षण किया जाना है. इसके लिए शुक्रवार शाम को प्रोटेम स्पीकर नियुक्त किया गया था. के. जी. बोपैया को विधानसभा का अस्थाई अध्यक्ष नियुक्त किए जाने के प्रदेश के राज्यपाल वजुभाई वाला के फैसले पर कांग्रेस और जेडीएस ने आपत्ति जताई है. इस मुद्दे को लेकर वे एक बार फिर सुप्रीम कोर्ट पहुंचे हैं. कांग्रेस की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट आज फैसला सुनाएगा. कांग्रेस ने मांग की है कि के.जी.बोपैया की जगह नियम अनुसार सबसे वरिष्ठ विधायक को ही प्रोटेम स्पीकर बनाया जाए. इस याचिका पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला आने के बाद ही ये साफ हो सकेगा कि बोपैया प्रोटेम स्पीकर बने रहते हैं या नहीं.

क्या होता है प्रोटेम स्पीकर
प्रोटेम (Pro-tem) लैटिन शब्‍द प्रो टैम्‍पोर(Pro Tempore) का संक्षिप्‍त रूप है. इसका शाब्दिक आशय होता है-'कुछ समय के लिए.' प्रोटेम स्‍पीकर की नियुक्ति गवर्नर करता है और इसकी नियुक्ति आमतौर पर तब तक के लिए होती है जब तक विधानसभा अपना स्‍थायी विधानभा अध्‍यक्ष नहीं चुन लेती. यह नवनिर्वाचित विधायकों का शपथ-ग्रहण कराता है और यह पूरा कार्यक्रम इसी की देखरेख में होता है. सदन में जब तक विधायक शपथ नहीं लेते, तब तक उनको सदन का हिस्‍सा नहीं माना जाता. इसलिए सबसे पहले विधायक को शपथ दिलाई जाती है. जब विधायकों की शपथ हो जाती है तो उसके बाद ये लोग विधानसभा अध्‍यक्ष का चुनाव करते हैं. परंपरा के मुताबिक सदन में सबसे वरिष्‍ठ सदस्‍य को गवर्नर, प्रोटेम स्‍पीकर के लिए चुनते हैं.

ये है कांग्रेस की आपत्ति
आवेदन में, गठबंधन ने भाजपा विधायक बोपैया को अस्थायी अध्यक्ष नियुक्त करने के फैसले को निरस्त करने की मांग करते हुए कहा है कि यह परंपरा के विपरीत है क्योंकि परंपरा के अनुसार इस पद पर आम तौर पर सबसे वरिष्ठ सदस्य को नियुक्त किया जाता है. आवेदन में कहा गया है कि राज्यपाल द्वारा एक कनिष्ठ विधायक को अस्थायी अध्यक्ष नियुक्त करना असंवैधानिक कदम है. आवदेन में यह सुनिश्चित करने के लिए तत्काल निर्देश की मांग की गई कि शक्ति परीक्षण स्वतंत्र एवं निष्पक्ष तरीके से हो.

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Friday, May 11, 2018

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